Tuesday 13 July 2010
ईश्वर को सिरजते हुए
सकलदीप सिंह की आखिरी प्रकाशित पुस्तक "ईश्वर को सिरजते हुए"। इस काव्य संग्रह को नाद प्रकाशन, कोलकाता ने प्रकाशित किया था.
Thursday 8 July 2010
सकलदीप सिंह नहीं रहे
कोलकाता: कोलकाता में लम्बे अरसे तक रहे और उसे ही कर्मक्षेत्र बनाने वाले श्मशानी पीढ़ी के चर्चित कवि व आलोचक सकलदीप सिंह का 21 मई 2010 को निधन हो गया। बिहार के जलालपुर (सारण) प्रखंड के विशुनपुरा ग्राम में सन् 1930 में जन्मे सिंह ने काव्य एवं आलोचना के क्षेत्र में साहित्य जगत को अविस्मरणीय सौगात दी है। श्मशानी पीढ़ी के संस्थापक सिंह पांचवें दशक में 'व्यक्तिक्रम' काव्य संग्रह से चर्चा में आये। 'पत्थर और लकीरें', 'आकस्मिक', 'क्षेपक', 'प्रतिशब्द', 'निसंग' और 'ईश्वर को सिरजते हुए' आदि इनके महत्वपूर्ण काव्य संग्रह है। उन्होंने तत्कालीन कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया जिसमें 'नया संदर्भ' भी शामिल है।
यह जानकारी उनके पैतृक गांव के कथाकार जवाहर सिंह और पत्रकार तीर्थराज शर्मा ने फोन पर दी है। जानकारी के मुताबिक वे अपने पुत्र सुजीत सिंह के साथ दुर्गापुर में रह रहे थे। जहां से अस्वस्थता के कारण उन्हें कोलकाता ले जाया गया था जहां, उनका निधन हो गया। हालांकि सुजीत सिंह से सम्पर्क फिलहाल नहीं हो सका है। सकलदीप सिंह राहुल सांकृत्यायन सम्मान सहित कुछ सम्मान भी प्राप्त हुए थे।
यह ब्लाग सकलदीप सिंह को ही समर्पित है। आप भी यदि सकलदीप सिंह के बारे में कुछ कहना लिखना चाहते हैं आपका स्वागत है। आप अपने विचार मुझे भेजें। उन्हें स्थान दिया जायेगा।
नोटः यह तस्वीर जगदीश चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित 'निषेध' से ली गयी है जिसमें कोलकाता से सकलदीप सिंह को उन्होंने शामिल किया था।
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